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नगराज दर्पण समाचार
गोरखपुर । गोरक्षपीठाधीश्वर एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि भारत की सनातन ऋषि परंपरा व गुरु परंपरा लोक और राष्ट्र कल्याण की परंपरा है। यह परंपरा हमें इस बात के लिए प्रेरित करती है कि हमारे जीवन का एक-एक कर्म, एक-एक क्षण सनातन के लिए, समाज के लिए, राष्ट्र के लिए समर्पित होना चाहिए। ऐसा करके ही हम गुरु परंपरा के प्रति कृतज्ञता व्यक्त कर सकते हैं। गोरक्षपीठ भी उसी गुरु परंपरा की पीठ है जो अहर्निश लोक कल्याण और राष्ट्र कल्याण के लिए कार्य कर रही है।
सीएम रविवार को गुरु पूर्णिमा के पर्व पर गोरखनाथ मंदिर के महंत दिग्विजयनाथ स्मृति भवन में विगत 15 जुलाई से चल रही श्रीरामकथा के विश्राम सत्र और गुरु पूर्णिमा महोत्सव को संबोधित कर रहे थे। गोरक्षपीठ के ब्रह्मलीन महंतद्वय दिग्विजयनाथ जी महाराज एवं महंत अवेद्यनाथ जी महाराज के चित्र पर पुष्पार्चन करने तथा व्यासपीठ का पूजन करने के उपरांत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि सनातन संस्कृति में ऋषि के साथ गोत्र की परंपरा भी साथ में चलती है। जब गोत्र की बात होती है तो जाति भेद समाप्त हो जाता है। हर गोत्र किसी न किसी ऋषि से जुड़ी है और ऋषि परंपरा जाति, छुआछूत या अश्पृश्यता का भेदभाव नहीं रखती है। एक ऋषि के गोत्र को कई जातियों के लोग अनुसरित करते हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि भारतीय संस्कृति दुनिया में सर्वाधिक और समृद्ध और प्राचीन है और सनातन पर्व-त्योहार इसके उदाहरण हैं। ये पर्व-त्योहार भारत को और सनातन धर्मावलंबियों को इतिहास की किसी न किसी कड़ी से जोड़ते हैं।

5 हजार वर्ष का इतिहास दुनिया में किसी के पास नहीं

योगी ने कहा कि गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। यह महर्षि कृष्ण द्वैपायन व्यास की जयंती है जिनकी कृपा से वैदिक साहित्य प्राप्त हुए हैं। जिन्होंने वेदों, पुराणों और अनेक महत्वपूर्ण शास्त्रों को उपलब्ध कराया है। उन्होंने कहा कि 5000 वर्ष पहले महर्षि व्यास इस धराधाम पर थे। उस कालखंड में उन्होंने कई पीढ़ियों का प्रतिनिधित्व किया। अनेक ग्रंथों की रचना कर उसे वर्तमान पीढ़ी के मार्गदर्शन के लिए भी अनुकूल बना दिया। भारत के अलावा 5000 वर्ष का इतिहास दुनिया में किसी के पास नहीं है। वर्तमान समय द्वापर और कलयुग का संधिकाल है। महाभारत के युद्ध के बाद महर्षि वेदव्यास ने श्रीमद्भागवत पुराण रचा जो मुक्ति और मोक्ष के मार्ग पर चलने को प्रेरित करने वाला पवित्र ग्रंथ है।

कर्म के अनुरूप मिलेगा फल

  गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ ने कहा कि माता-पिता पहले गुरु हैं। इसके बाद स्कूली शिक्षक, पुरोहित-कुलगुरु, बड़ा भाई, और ऋषि-संतों की परंपरा, गोत्रों की परंपरा भी गुरु परंपरा में सम्मिलित होती है। गुरु परंपरा का उद्देश्य मनुष्य को अच्छे मार्ग पर अग्रसर करना है। माता-पिता, बड़ा भाई, पुरोहित-कुलगुरु, संत, ऋषि इसी उद्देश्यपरक कार्य के हितैषी होते हैं। उन्होंने कहा कि हम जैसा कार्य करेंगे, परिणाम भी उसी के अनुरूप मिलेगा। अच्छा कार्य करेंगे तो अच्छा फल मिलेगा और गलत काम करेंगे तो उसका फल भी हमें ही भुगतना होगा। इस संबंध में उन्होंने महर्षि वाल्मीकि के संत बनने से पूर्व के जीवन की कथा भी सुनाई और संदेश दिया कि कोई भी गलत काम में हासिल होने वाले पाप में भागीदारी नहीं बनना चाहता है। सीएम योगी ने कहा कि भगवान श्रीराम ने जीवन में मर्यादा को महत्व दिया। हर कार्य की लक्ष्मण रेखा तय की, संबंधों को मर्यादित तरीके से जीना सिखाया। इसी तरह भगवान श्रीकृष्ण ने कर्म की प्रेरणा दी। आज अधिकतर लोग कम कर्म के बदले अधिक हाईलाइट होने के प्रयास में रहते हैं। जबकि भगवान श्रीकृष्ण ने निष्काम कर्म की प्रेरणा दी है। यानी कर्म करो, फल की चिंता मत करो। हमारे शास्त्र और गुरु परंपरा में भी कहा गया है- अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्। अर्थात जैसा कर्म करेंगे, उसके अनुरूप फल से वंचित नहीं रहेंगे। जो करेंगे, उसके अनुरूप परिणाम अवश्य भोगना पड़ेगा।

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