Nagraj Darpan

देश के 78वें स्वतंत्रता दिवस पर सबसे पहले हमें देश को आजादी दिलाने वालों को नमन करना चाहिए लेकिन इसके साथ ही यह चिंतन भी करना होगा कि आजादी के 78 वर्षों मंे क्या हम अपने उस दायित्व का निर्वहन करने में सफल हुए हैं जिसकी अपेक्षा देश की आजादी के लिए बलिदान करने वालों ने की थी। यह दिन अपार खुशियों का है इसलिए जश्न मनाएं लेकिन मनन भी करें।
यह सच है कि आजादी के बाद भारत कई क्षेत्रों में सशक्त बना है ,लेकिन अभी भी हमारे सामने चुनौतियां बरकरार हैं। एक ओर हम देश की विपुल संस्कृति और ज्ञान पर गर्व करते हैं, दूसरी तरफ हमारे देश का एक भी विश्वविद्यालय विश्व रैंकिंग में उपस्थिति दर्ज नहीं कर पा रहा है। ऐसे तमाम क्षेत्र हैं जिनमें अभी सुधार अपेक्षित हैं। प्रायः सरकारों से देश की उन्नति व समृद्धि के लिए काम करने की आशा की जाती हैं,लेकिन हमें समझना होगा कि जनता की सहभागिता के बिना किसी भी देश या समाज की तरक्की संभव नहीं है।
हम वसुधैव कुटुंबकम् कि बात करते हैं ,लेकिन अपने ही देश में एकता के साथ नहीं रह पा रहे हैं। आजादी के इतने वर्षों के बाद भी गांवों-कस्बों में अस्पृश्यता, भेदभाव, धार्मिक विद्वेष और जातीय हिंसा की घटनाएं देखी जाती हैं। बाबा साहब ने आगाह किया था कि राजनीतिक स्वतंत्रता तब तक कोरी कल्पना है,जब तक सामाजिक स्वतंत्रता का लक्ष्य हासिल नहीं हो जाता। हमारे नीति नियंताओं और देश की जनता की भी जिम्मेदारी है कि ऐसी नकारात्मक ताकतों से सख्ती के साथ मुकाबला करें।
स्वतंत्रता दिवस जिस माहौल में मना रहे हैं, उसमें ध्यान रखना होगा कि वैचारिक निडरता के बिना लोकतंत्र चल ही नहीं सकता। हमें यह बात ध्यान रखनी होगी कि एकता से ही संपन्नता व समृद्धि की राह निकलती है। इसके साथ ही हमें देश में प्राप्त अपने अधिकारों के प्रति ही नहीं, देश के प्रति अपने कर्तव्यों को भी समझना होगा। तभी देश की आजादी का जश्न सही मायनों में सार्थक होगा। आज हम यह भी शपथ लें कि लोकतंत्र की मर्यादा हर मंच पर कायम रखेंगे। इसी दिन हमारे वीर स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने हमें अंग्रेजों के अत्याचारों से मुक्ति दिलाई थी। हमें आजादी दिलाने के लिए न जाने कितने वीर वीरांगनाओं ने अंग्रेजों की अमानवीय यातनाओं व अत्याचारों का सामना किया और देश की आजादी के लिए अपनी आहुतियां दी। यह दिन ऐसे ही वीर-वीरांगनाओं को याद करने का दिन है। इस दिन का भारत के प्रत्येक नागरिक के लिए एक विशेष महत्व है, इस दिन हर भारतवासी अपने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को याद करता है, जिनके खून पसीने और संघर्ष से हमें आजादी नसीब हुई। स्वतंत्रता के मायने हर नागरिक के लिए अलग-अलग होते हैं, कोई व्यक्ति स्वतंत्रता को अपने लिए खुली छूट मानता है, जिसमे वो अपनी मर्जी का कुछ भी कर सके, चाहे वो गलत हो या सही हो। लेकिन स्वतंत्रता सिर्फ अच्छी चीजों के लिए होती है। बुरी चीजों के लिए स्वतंत्रता अभिशाप बन जाती है। इसलिए स्वतंत्रता के मायने तभी हैं जब स्वतंत्रता में मर्यादा, चरित्र और समर्पण का भाव हो। अगर स्वतंत्रता में मर्यादा, चरित्र और समर्पण ही नहीं है तो यह आजादी नहीं बल्कि एक प्रकार का छुट्टापन होता है। जिसपर कोई भी लगाम नहीं होती। यही छुट्टापन देश और समाज में बलात्कार, छेड़खानी, हत्या और मॉब लिंचिंग जैसी घटनाओं के अंजाम के लिए जिम्मेदार होता है। स्वतंत्रता दिवस के दिन देश के युवा पतंगें उड़ा कर आजादी का जश्न मनाते हैं। हवा में लहराती पतंगें संदेश देती हैं कि हम आजाद देश के निवासी हैं। पर क्या तिरंगा फहराकर या पतंग उड़ाकर आजादी का अहसास हो जाता है? क्या भारत में हर किसी को आजादी से जीने का हक मिल पाया है? हमें आजादी मिली, उसका हमने क्या सदुपयोग किया। लोग पेड़ों को काट रहे हैं। बालिका भ्रूण की हत्या हो रही है। सड़कों पर महिलाओं पर अत्याचार होते हैं। अकेले रह रहे बुजुर्गों की हत्या कर दी जाती है। शराब पीकर लोग देश में सड़क हादसों को अंजाम देते हैं, और दूसरे बेगुनाह लोगों को मार देते हैं। ये कैसी आजादी है, जहां एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के अधिकारों का हनन कर रहा है।

बेशक भारत को स्वतंत्र हुए 77 साल हो गए हों, लेकिन आज भी हमारे आजाद भारत देश में बाल अधिकारों का हनन हो रहा है। छोटे-छोटे बच्चे स्कूल जाने की उम्र में काम करते दिख जाते हैं। आज बाल मजदूरी समाज पर कलंक है। इसके खात्मे के लिए सरकारों और समाज को मिलकर काम करना होगा। साथ ही साथ बाल मजदूरी पर पूर्णतया रोक लगानी चाहिए। बच्चों के उत्थान और उनके अधिकारों के लिए अनेक योजनाओं का प्रारंभ किया जाना चाहिए। जिससे बच्चों के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव दिखे और शिक्षा का अधिकार भी सभी बच्चों के लिए अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए। गरीबी दूर करने वाले सभी व्यवहारिक उपाय उपयोग में लाए जाने चाहिए। बालश्रम की समस्या का समाधान तभी होगा जब हर बच्चे के पास उसका अधिकार पहुँच जाएगा। इसके लिए जो बच्चे अपने अधिकारों से वंचित हैं, उनके अधिकार उनको दिलाने के लिये समाज और देश को सामूहिक प्रयास करने होंगे। आज देश के प्रत्येक नागरिक को बाल मजदूरी का उन्मूलन करने की जरुरत है। देश के किसी भी हिस्से में कोई भी बच्चा बाल श्रमिक दिखे, तो देश के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह बाल मजदूरी का विरोध करे और इस दिशा में उचित कार्यवाही करें साथ ही साथ उनके अधिकार दिलाने के लिये प्रयास करें। देश का हर बच्चा कन्हैया का स्वरुप है, इसलिए कन्हैया के प्रतिरूप से बालश्रम कराना पाप है। इस पाप का भगीदार न बनकर देश के हर नागरिक को देश के नन्हे-मुन्नों को शिक्षा का अधिकार दिलाना चाहिए जिससे कि हर बच्चा बड़ा होकर देश का नाम विश्व स्तर पर रोशन कर सके।भारत देश में कानून बनाने का अधिकार केवल भारतीय लोकतंत्र के मंदिर भारतीय संसद को दिया गया है। जब भी भारत में कोई नया कानून बनता है तो वो संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) से पास होकर राष्ट्रपति के पास जाता है। जब राष्ट्रपति उस कानून पर बिना आपत्ति किये हुए हस्ताक्षर करता है तो वो देश का कानून बन जाता है। लेकिन आज देश के लिए कानून बनाने वाली भारतीय लोकतंत्र की सर्वोच्च संस्था भारतीय संसद की हालत दयनीय है। जो लोग संसद के दोनों सदनों में प्रतिनिधि बनकर जाते हैं, वो लोग ही आज संसद को बंधक बनाये हुए हैं और उनमें से अधिकतर लोग लोकतन्त्र के मन्दिर भारतीय संसद की मर्यादा को तार-तार करते हैं व विश्व समुदाय के सामने देश के गौरव को कलंकित करने का काम करते है। जब भी संसद सत्र चालू होता है तो संसद सदस्यों द्वारा चर्चा करने की बजाय हंगामा किया जाता है और देश की जनता के पैसों पर हर तरह की सुविधा पाने वाले संसद सदस्य देश के भले के लिए काम करने की जगह संसद को कुश्ती का अखाडा बना देते हैं, जिसमें पहलवानी के दांवपेचों की जगह आरोप प्रत्यारोप और अभद्र भाषा के दांवपेंच खेले जाते हैं। जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है। आज जरुरत है कि देश के लिए कानून बनाने वाले संसद सदस्यों के लिए एक कठोर कानून बनना चाहिए। जिसमें कड़े प्रावधान होने चाहिए, जिससे कि संसद सदस्य संसद में हंगामा खड़ा करने की जगह देश की भलाई के लिए अपना योगदान दें। आज हमारे जनप्रतिनिधि आम जनता के प्रतिनिधि न होकर सिर्फ और सिर्फ अपने और अपने लोगों के प्रतिनिधि बनकर खड़े होते हैं, यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। एक स्वतंत्र गणतांत्रिक देश में जनप्रतिनिधियों से देश का कोई भी नागरिक ऐसी अपेक्षा नहीं करता है। हर जनप्रतिनिधि का फर्ज है कि वह अपने और अपने लोगों का प्रतिनिधि बनने की बजाय अपने क्षेत्र की सम्पूर्ण जनता के प्रतिनिधि बने और देश के सभी जनप्रतिनिधियों को न्यायप्रिय शासन करना चाहिए, जिसमें समाज के हर तबके के लिए स्थान हो तभी हमारी स्वतंत्रता अक्षुण्ण रह पाएगी।

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