
किसी भी समाज, देश, संस्था और उद्योग में मजदूरों, कामगारों और मेहनतकशों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। हम ऊँची-ऊँची अट्टालिकाओं को देखकर उसकी खूबसूरती और भव्यता की तारीफ तो करते हैं लेकिन उसे आकार देने वाले मजदूरों को कभी याद नहीं करते। इतना ही नहीं, मजदूरों की सुविधा का भी ध्यान नहीं रखा जाता है। पहले तो गुलामों की तरह उनसे काम लिया जाता था और काम के कोई घंटे ही तय नहीं थे। अमेरिका मंे 1 मई 1886 को मजदूर यूनियनों ने काम के घंटे तय करने के लिए हड़ताल की। स्वाभाविक है कि इसका विरोध भी हुआ लेकिन अंत में जीत मेहनतकश मजदूरों की हुई। मजदूरों के लिए अधिकतम 8 घंटे का मजदूरी का समय तय किया गया। इसी के बाद 1 मई को दुनिया भर मंे मजदूरों की इस जीत की खुशी मंे मजदूर दिवस मनाया जाता है। इस जीत के बाद भी मजदूरों की समस्याएं विकराल रूप में हैं। उनका भविष्य अंधकारमय रहता है। इसलिए मजदूरों के हित में कल्याणकारी सरकारें नियम-कानून बनाती रहती हैं। भारत मंे मजदूर दिवस सबसे पहले चेन्नई में
1 मई 1923 को मनाया गया था। उस समय यह मद्रास दिवस के रूप में मनाया गया था। मौजूदा समय में नरेन्द्र मोदी की सरकार ने देश के कामगारों के हित में कई योजनाएं शुरू की हैं। यूपी मंे योगी सरकार ने श्रमिकों का पंजीकरण कराया है ताकि उन्हंे योजनाओं का लाभ मिल सके।