
देश के पांच महत्वपूर्ण राज्यों में जिस समय विधानसभा चुनावों की तारीख घोषित की जा रही थी, उसी समय लद्दाख से कांग्रेस के लिए एक अच्छी खबर आ रही थी। पार्टी के पूर्व अध्यक्ष और विपक्षी गठबंधन के संभावित नेता राहुल गांधी की मोहब्बत की दुकान लगता है जम्मू-कश्मीर मंे चल गयी है। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के निष्प्रभावी होने के बाद कारगिल मंे लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय परिषद (एलए एचडीसी) के चुनाव कराये गये। लद्दाख परिषद में 26 सीटें हैं। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक 22 सीटों ेके नतीजे घोषित हो चुके थे। कांग्रेस ने नेशनल कांफ्रेंस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा है। इस चुनाव में कांग्रेस को 8 और नेशनल कांफ्रेंस को 11 सीटों पर जीत हासिल हो चुकी थी। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को सिर्फ 2 सीटों पर कमल खिलाने में सफलता मिली थी। निर्दलीय उम्मीदवार ने एक सीट पर जीत दर्ज की थी। खुशी की बात यह कि कारगिल जिले में 65 फीसद लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था। हालांकि राहुल गांधी की मोहब्बत की दुकान देखकर आम आदमी पार्टी (आप) खुश नहीं है। आप के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। इन राज्यों में कांग्रेस और भाजपा की सीधी टक्कर होती है लेकिन आम आदमी पाघ्र्टी के उतरने से कांग्रेस को नुकसान पहुंच सकता है।
आर्टिकल 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में हुए पहले चुनाव में कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस गठबंधन ने कारगिल में लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय परिषद के चुनावों में बीजेपी को शिकस्त दे दी है। गत 9 अक्टूबर को जब 26 सीटों वाली लद्दाख परिषद के चुनाव में वोटों की गिनती जारी तब कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने बीजेपी को काफी पीछे छोड़ दिया था। अभी तक जिन 22 सीटों के नतीजे घोषित किए गए, उनमें से कांग्रेस ने आठ और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 11 सीटों पर जीत हासिल की। वहीं, बीजेपी ने महज 2 सीटें हासिल कीं। एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार ने भी जीत दर्ज की है। इसके बाद वोटिंग अधिकार रखने वाले चार सदस्यों को उपराज्यपाल बाद में नामित करेंगे। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) प्रमुख महबूबा मुफ्ती कहती हैं कि नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस जैसी धर्मनिरपेक्ष पार्टियों को कारगिल में जीतते देखना खुशी की बात है। पांचवें एलएएचडीसी चुनाव के तीसरे दौर में कारगिल जिले में लगभग 65 प्रतिशत वोटिंग हुई थी। पिछले महीने की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद लद्दाख प्रशासन ने कारगिल क्षेत्र में पांचवें एलएएचडीसी के चुनाव के लिए एक नए कार्यक्रम की घोषणा की थी। यह नोटिफिकेशन उस समय आया था जब सुप्रीम कोर्ट ने आगामी चुनाव के लिए नेशनल कॉन्फ्रेंस के पार्टी चिन्ह को बहाल करते हुए केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन की पिछली चुनाव अधिसूचना को भी रद्द कर दिया था। अधिसूचना के अनुसार 30 सदस्यीय एलएएचडीसी की 26 सीटों के लिए चुनाव 4 अक्टूबर को हुए थे। कांग्रेस ने चुनाव से पहले नेशनल कॉन्फ्रेंस से हाथ मिलाया और 22 उम्मीदवार उतारे। एनसी ने 17 को मैदान में उतारा थे।
बीजेपी ने 17 उम्मीदवार मैदान में उतारे थे। पिछले चुनाव में बीजेपी ने एक सीट जीती थी और बाद में दो पीडीपी पार्षदों के शामिल होने से उसकी सीटों की संख्या तीन हो गई थी। हालांकि, इस बार बीजेपी ने कुल 17 उम्मीदवार खड़े किए थे। आम आदमी पार्टी (आप) ने चार सीटों पर अपनी किस्मत आजमाई, जबकि 25 निर्दलीय भी मैदान में थे।
लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद, लेह (लद्दाख ऑटोनोमस हिल डेवलपमेंट काउन्सिल, लेह) (लद्दाख) एक स्वायत्त पहाड़ी परिषद है जिसके अधीन भारत के उत्तरतम राज्य जम्मू और कश्मीर, के लेह जिले का क्षेत्र प्रशासन है।परिषद ने हाल ही में अपने प्रतीक चिह्न में बदलाव किया है और नये चिह्न में पुराने आठ भुजाओं वाले बौद्ध चक्र के स्थान पर सारनाथ के अशोक स्तम्भ के तीन सिंह मुखों को स्थान दिया है। परिषद 30 पार्षदों से बनी है जिसमें से 26 सीधे निर्वाचित और 4 नामित सदस्य होते हैं। परिषद की कार्यकारी शाखा एक कार्यकारी समिति के रूप में होती है। इस समिति का गठन एक मुख्य कार्यकारी पार्षद और चार अन्य कार्यकारी पार्षदों से होता है । दरअसल, 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 निरस्त करने के बाद ये पहला चुनाव था। ऐसे में चुनाव नतीजों ने लोकसभा चुनाव 2024 से पहले नेशनल कॉन्फ्रेंस और खासकर कांग्रेस को बड़ी राहत दी है।
दोनों दल केंद्र की बीजेपी सरकार पर जम्मू-कश्मीर का विभाजन (दो केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और लद्दाख) करने का विरोध कर रहे थे। उनका कहना है कि केंद्र ने तानाशाही रवैया अपनाते हुए बिना राज्य की जनता को कॉन्फिडेंस में लिये उनके हक को छीना है। हालांकि, बीजेपी इन तर्कों को खारिज कर रही है। उसका कहना था कि अनुच्छेद 370 निरस्त करने से तस्वीर बदली है।
राजनीतिक जानकारों की मानें, लद्दाख चुनाव के नतीजे बीजेपी के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं है क्योंकि पार्टी ने 2018 के बाद से जिस तरीक से क्षेत्र में अपनी सक्रियता बढ़ाई थी, उसे उम्मीद थी कि चुनाव में कमल खिलेगा लेकिन उसे वो सफलता हासिल नहीं हुई। हालांकि, पिछले बार के मुकाबले एक सीट का जरूर फायदा हुआ लद्दाख लोकसभा सीट 9 सालों से बीजेपी के पास है। 2019 में जामयांग सेरिंग नामग्याल और 2014 में थुपस्तान छेवांग को जीत मिली थी। वोट शेयर की बात करें तो 2014 में बीजेपी का मत प्रतिशत 26.36 था तो वहीं, 2019 में 33.94 फीसदी वोट पार्टी को मिले थे। यानी 7.58 प्रतिशत का फायदा बीजेपी को मिला था। वहीं, 2014 में कांग्रेस को 22.37 और 2019 में 16.80 फीसदी वोट मिला था।
विधानसभा की बात करें तो लद्दाख में कुल चार विधानसभा की सीटें हैं, जिसमें नुब्रा, कारगिल, जांस्कर और लेह शामिल है। यानी एक तरीके से 2014 के विधानसभा चुनाव में लद्दाख में कांग्रेस का दबदबा था। लेकिन ये दबदबा 2019 के लोकसभा चुनाव में नहीं दिखा। वरिष्ठ पत्रकार ललित राय के अनुसार अगस्त में राहुल गांधी की लद्दाख यात्रा से कांग्रेस को लाभ मिला है। भारत जोड़ो यात्रा से शुरू हुआ राहुल गांधी का आम जनता से संवाद काफी असरदार रहा है। लद्दाख चुनाव के लिए कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस और बीजेपी के शीर्ष नेताओं ने अपनी-अपनी पार्टियों के लिए प्रचार किया था। कांग्रेस नेता राहुल गांधी, एनसी के उमर अब्दुल्ला, बीजेपी की तरफ से केंद्रीय राज्य मंत्री मीनाक्षी लेखी, तरूण चुघ और जमयांग नामगयाल ने अपनी-अपनी पार्टी के उम्मीदवारों के लिए प्रचार किया था। यानी दमखम दिखाने की कोशिश दोनों तरफ से हुई लेकिन जीत कांग्रेस-एनसी गठबंधन को मिली।