न्यूयॉर्क टाइम्स ने एक रिपोर्ट जारी कर बताया था कि न्यूजक्लिक को एक अमेरिकी अरबपति नोवेल रॉय सिंघम ने फाइनेंस किया था। वे चीनी प्रोपेगैंडा को बढ़ावा देने के लिए भारत समेत दुनियाभर में संस्थाओं को फंडिंग करता हैं।

विगत नौ वर्षों में भारत का राष्ट्रीय स्वाभिमान बढ़ा है। साँस्कृतिक चेतना का भाव जागृत हुआ है। योग आयुर्वेद श्री अन्ना जैसी भारतीय विरासत को दुनिया में प्रतिष्ठा मिल रही है। विश्व समुदाय का इनके प्रति आकर्षण बढ़ रहा है। विश्व स्तर पर समर्थ सक्षम भारत का प्रभाव कायम हुआ है। विकसित देश भी स्वीकार कर रहे हैं कि वैश्विक समस्याओं का समाधान भारतीय चिंतन से सम्भव है। जी 20 शिखर सम्मेलन में वसुधैव कुटुम्बकम की गूँज रही। दुनिया के लिए यह चिंतन दुर्लभ है लेकिन चीन पाकिस्तान सहित अनेक भारत विरोधी तत्व इन बातों से परेशान होते है। दुनिया में भारत के बढ़ते महत्व ने उन्हें बेचैन किया है। इसलिए वह भारत के विरुद्ध विमर्श खड़े करते है। इसके लिए बड़ी धनराशि खर्च की जाती है। हिन्दू सनातन उनके निशाने पर रहते है। यही लोग कहते हैं कि भारत में संविधान लोकतंत्र को समाप्त किया जा रहा है। मुसलमानों दलितों पिछड़ों को निशाना बनाया जा रहा है जबकि इसके प्रमाण नहीं हैं लेकिन विमर्श चलाया जाता है। भारतीय जीवन शैली और परिवार व्यवस्था के प्रतिकूल उपभोगवाद उपभोक्तावाद को सुनियोजित प्रोत्साहन दिया जा रहा है जबकि विश्व और मानवता का कल्याण भारतीय चिंतन से ही सम्भव होगा। इसमें ही सर्वे भवन्तु सुखिनः की कामना है। इसी में पर्यावरण और प्रकृत्ति के संरक्षण संवर्धन का संदेश है। भारत के विरोध में चलाए जा रहे विमर्श से अंततः मानवता का ही अहित होगा।
ऐसा नहीं कि नकारात्मक विमर्श कोई नया है। विदेशी आक्रांताओं ने भी विमर्श चलाया था कि दिल्ली का बादशाह पूरे देश का राजा है। गोस्वामी तुलसी दास ने श्री रामलीला के माध्यम से इसका प्रतिकार किया।श्रीराम में राजा रामचन्द्र की जय का उद्घोष होता था। संदेश यह दिया जाता था कि हमारे राजा तो प्रभु श्री राम हैं। समय समय पर अनेक संतों महात्माओं ने विश्व गुरु भारत की विरासत से लोगों को अवगत कराया। ब्रिटिश काल में विमर्श चलता था कि भारतीय समाज कभी संगठित नहीं हो सकता। तब डॉ हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ की स्थापना की। संगठित शक्ति का संदेश दिया। भारतीय चिंतन व संस्कृति में मानव कल्याण की कामना की गई। इसमें कभी संकुचित विचारों को महत्व नहीं दिया गया। समय-समय पर अनेक संन्यासियों व संतों ने इस संस्कृति के मूल भाव का सन्देश दिया। सभी ने समरसता के अनुरूप आचरण को अपरिहार्य बताया। इसके साथ ही राष्ट्रीय स्वाभिमान पर भी बल दिया गया।
भारत के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का विचार व क्षेत्र व्यापक रहा है। राष्ट्रीय स्वाभिमान किसी देश को शक्तिशाली बनाने में सहायक होता है। तब उसके विचार पर दुनिया ध्यान देती है।भारत ने अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्रसंघ में किया था। इस प्रस्ताव को न्यूनतम समय में सर्वाधिक देशों का समर्थन मिला था। भारत ने कभी अपने मत का प्रचार तलवार के बल पर नहीं किया। देश में इसी विचार के जागरण की आवश्यकता है। अयोध्या में श्री राम मंदिर का निर्माण व भव्य श्री काशी विश्वनाथ धाम महत्वपूर्ण पड़ाव के रूप में है। स्वामी विवेकानन्द ने ऐसे ही राष्ट्रीय स्वाभिमान के जागरण का विचार दिया था। उन्होंने परतंत्र भारत को राष्ट्रीय गौरव का स्मरण दिलाया था। इसके माध्यम से उन्होंने समर्थ भारत का स्वप्न देखा था। वह मानते थे कि विश्वगुरु होने की क्षमता केवल भारत के पास है। इस तथ्य का विस्मरण नहीं होना चाहिए। उन्होंने दुनिया को भारत की शाश्वत और मानवतावादी संस्कृति का ज्ञान दिया। विश्व ने विस्मय के साथ उनको सुना। भारत राजनीतिक रूप से परतंत्र था, लेकिन विश्व गुरु को सांस्कृतिक रूप से कभी गुलाम नहीं बनाया जा सकता। स्वामी विवेकानन्द के प्रत्येक ध्येय वाक्य भारतीय संस्कृति उद्घोष करने वाले है। उनसे संबंधित समारोह उत्सव से विचारों की प्रेरणा मिलती है। उन्होंने विश्व में भारत की सांस्कृतिक पताका फैलाई थी। दुनिया को भारत की शाश्वत और मानवतावादी संस्कृति का ज्ञान दिया। विश्व ने विस्मय के साथ उनको सुना। विश्व और मानवता का कल्याण भारत की वसुधैव कुटुम्बकम की भावना से ही हो सकता है। अपने पूर्वजों, सांस्कृतिक परम्पराओं पर गौरव की अनुभूति होनी चाहिए। भारत राष्ट्र बनने की प्रक्रिया कभी नहीं रहा। यह शाश्वत रचना है।इसका उल्लेख विश्व के सबसे प्राचीन ग्रन्थ ऋग्वेद में भी है। इसमें कहा गया कि भारत हमारी माता है हम सब इसके पुत्र है। राष्ट्र की उन्नति प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है। जो लोग भारत को नही जानते वो लोग भारत के बारे में गलत बात षड्यंत्र करके भारत को नक्सलवाद, उग्रवाद आतंकवाद में धकेलने का प्रयास करते है। विष्णु पुराण में कहा गया कि यह भूभाग देवताओं के द्वारा रच गया है। वर्तमान समय में भी भारत विरोधी तत्व विमर्श चला रहे हैं।