
अगले साल होने वाले आम चुनाव से पहले ही पांच राज्यों मंे विधानसभा चुनाव भी महासमर ही माने जा रहे हैं। अगले महीने 7 नवम्बर से इनकी शुरुआत हो जाएगी। मध्य प्रदेश मंे 17 नवम्बर को चुनाव होगा। भाजपा और कांग्रेस का सीधा मुकाबला माना जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी यहां ताबड़तोड़ जनसभाएं कर चुके हैं तो कांग्रेस की तरफ से राहुल गांधी भी मैदान में पहुंच गये हैं। दलित वोटों को सहेजने बसपा प्रमुख मायावती भी यहां मोर्चा संभाले हैं। उन्होंने आदिवासी वोट भी अपने साथ लेने के लिए गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से गठबंधन किया है। बसपा राज्य की 178 सीटों पर चुनाव लड़ेगी तो जीजीपी 52 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार रही है। आचार संहिता लगने के बाद कांग्रेस की बड़ी जनसभा राहुल गांधी ने विंध्य के शहडोल मंे की है। उधर, भाजपा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के करिश्मे पर ही भरोसा कर रही है। इसके साथ ही संघ परिवार का मजबूत काडर उसके साथ है। पार्टी ने दिग्गज नेताओं को मैदान मंे उतारा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान के सामने सत्ता विरोधी लहर है लेकिन लाड़ली बहना जैसी लोकप्रिय योजनाएं भी उनकी स्थिति को मजबूत कर रही हैं। पीएम मोदी 7 महीने मंे 9 बार मध्य प्रदेश का दौरा कर चुके हैं।
मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव की आचार संहिता लगने के बाद कांग्रेस ने पहली बड़ी जनसभा विंध्य क्षेत्र में की है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने 10 अक्टूबर को शहडोल जिले में बड़ी जनसभा को संबोधित किया। पिछले विधानसभा चुनाव में विंध्य क्षेत्र से झटका खाने के बाद कांग्रेस ने यहां के लिए विशेष रणनीति बनाई है। इस जनसभा के माध्यम से राहुल गांधी आदिवासी वोटर को साधने का प्रयास करेंगे। एमपी में विधानसभा का चुनावी शंखनाद हो चुका है। आचार संहिता भी लागू हो चुकी है। यहां 17 नवबंर को मतदान होगा। राहुल गांधी आदिवासी बाहुल्य शहडोल में आदिवासी वोटर को साधने का प्रयास करेंगे। मिशन 2023 की तैयारी में जुटी बीजेपी और कांग्रेस आदिवासी वोटबैंक को साधने में कोई कोई-कसर नहीं छोड़ रही है। दोनों ही पार्टियां आगामी विधामसभा चुनाव को लेकर एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है। यही कारण है कि आदिवासी बाहुल्य शहडोल में दोनों पार्टी के बड़े नेता दौरे करने में लगे हुए हैं। बीते 1 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आदिवासी क्षेत्र शहडोल अंचल के दौरे पर रहे। वहीं, अब कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी वही प्रयास कर रहे हैं। इस जनसभा के दौरान राहुल गांधी के साथ पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ, दिग्विजय, अजय सिंह राहुल कमलेश्वर पटेल सहित कई दिग्गज नेता मौजूद थे।
कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता सहरयार खान के अनुसार इस मौके पर कांग्रेस की जन आक्रोश यात्रा का समापन भी होगा।
कांग्रेस के खिलाफ आम आदमी पार्टी और बसपा वोट बैंक में सेंध लगा सकते हैं। मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए बहुजन समाज पार्टी और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने गठबंधन किया है। दोनों पार्टियों में सीट बंटवारे को लेकर भी सहमति बन गई है। बसपा 178 सीटों पर चुनाव लड़ेगी तो वहीं गोंगपा 52 सीटों पर अपने प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतारेगी। बसपा ने छतरपुर जिले की राजनगर सीट से अपना प्रत्याशी बदला है। पहले यहां से रामराज पाठक को प्रत्याशी बनाया गया था, लेकिन अब उनकी जगह बीजेपी के पूर्व जिला अध्यक्ष घासीराम पटेल को प्रत्याशी घोषित किया गया है। बहुजन समाज पार्टी ने कुछ दिनों पहले अपने विधानसभा उम्मीदवारों की दूसरी सूची जारी की थी। दूसरी लिस्ट में 9 प्रत्याशियों के नाम सामने आए थे। वहीं इससे पहले बसपा ने 11 अगस्त को अपने विधानसभा उम्मीदवारों की पहली लिस्ट का ऐलान किया था।
भाजपा को मोदी पर भरोसा है। भाजपा के कई नेता, जिनमें से कुछ संघ की विचारधारा के प्रति समर्पित हैं, कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। संघ के कुछ पुराने चेहरों ने नई पार्टी बना ली। कांग्रेस ने कृषि ऋण माफी, पुरानी पेंशन योजना को फिर से शुरू करने और 100 यूनिट तक मुफ्त बिजली जैसी कई गारंटियों का आश्वासन दिया है। इसके बावजूद भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्मे और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान की व्यापक अपील पर बहुत अधिक भरोसा कर रही है, जो एक ओबीसी नेता हैं और अपनी जमीन से जुड़ी छवि के लिए जाने जाते हैं।
सत्तारूढ़ पार्टी महिला मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए अपनी पहुंच पर भरोसा कर रही है और उसने लाडली बहना योजना जैसी समर्पित योजनाएं शुरू की हैं। इस योजना के तहत पात्र महिलाओं को 1,250 रुपए प्रति माह मिलते हैं और सरकार ने इस राशि को 3,000 रुपए प्रति माह तक बढ़ाने का वादा किया है। भाजपा के पास एक मजबूत संगठनात्मक ढांचा जो पूरे वर्ष चुनावी ढंग में रहता है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मप्र में पार्टी संगठन को देश में सर्वश्रेष्ठ में से एक करार दिया है। भाजपा हिंदुत्व, विकास और डबल इंजन विकास के मुद्दे पर भरोसा कर रही है। एक कुशल रणनीतिकार माने जाने वाले शाह तैयारियों की निगरानी कर रहे हैं। अपने कुछ सांसदों और कुछ केंद्रीय मंत्रियों को मैदान में उतारे जाने के बाद सत्ताधारी दल व्यापक अपील का लाभ उठाना चाहता है। भगवा पार्टी ने अपने राष्ट्रीय महासचिव और भीड़ खींचने वाले कैलाश विजयवर्गीय को भी टिकट दिया है।
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के समक्ष कई अहम चुनौतियां होंगी। भाजपा को चुनावों में कांग्रेस को रोकने के लिए सत्ता विरोधी लहर से लड़ना होगा, अंदरूनी कलह से उबरना होगा और 16 साल से अधिक समय के दौरान राज्य नेतृत्व के प्रति अरुचि के बीच मतदाताओं का सामना करना होगा। प्रदेश में 2003, 2008 और 2013 में लगातार तीन चुनाव जीतने के बाद, भाजपा 2018 में कांग्रेस से हार गई थी लेकिन मार्च 2020 में कमलनाथ के नेतृत्व वाली सरकार गिरने के बाद सत्ता में वापस आने में कामयाब रही। आज नजर डालेंगे मध्य प्रदेश में बीजेपी के एक आकलन (ताकतें, कमजोरियां, अवसर, खतरे) पर, जहां भगवा पार्टी और कांग्रेस पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी हैं। संभावित सत्ता विरोधी लहर, क्योंकि दिसंबर 2018 से मार्च 2020 तक एक संक्षिप्त झटके को छोड़कर, भाजपा पार्टी 2003 से राज्य में शीर्ष पर है।
राज्य मंे कांग्रेस ने 2003 के बाद से अधिकांश खोई हुई जमीन हासिल कर ली है। 2003 में उसने सिर्फ 38 सीटें जीती थीं, लेकिन 2018 में 114 निर्वाचन क्षेत्रों में जीत हासिल करके वापसी की। उधर, 2003 में, भाजपा ने 173 सीटें जीतीं, लेकिन 2008 में इसकी संख्या घटकर 143 रह गई। 2013 में, भाजपा ने 165 सीटें हासिल की, लेकिन 2018 में उसने बहुमत खो दिया जब उसकी संख्या 109 तक गिर गई।