
भगवान बुद्ध ने कहा था कि किसी को मानसिक पीड़ा देना भी हिंसा होती है। स्वामी प्रसाद मौर्य अपने को बौद्ध कहते हैं लेकिन वह लगातर बौद्ध दर्शन का उल्लंघन कर रहे हैं। उनके बयानों से हिन्दुओं को मानसिक पीड़ा पहुँच रही है। बौद्ध चिंतन के अनुसार उनका यह आचरण हिंसा की परिधि में है। पहले रामचरितमानस की एक चैपाई का उन्होंने गलत अर्थ बता कर आस्था पर प्रहार किया था लेकिन उन्होंने इस पर मुँह की खाई थी। फिल्मी कोई सबक नहीं लिया। अब कहा कि हिन्दू धर्म नहीं धोखा है। ऐसा कह कर उन्होंने संविधान की भावना पर प्रहार किया है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 में हिन्दू शब्द का उल्लेख है। जैन, सिख, बौद्ध धर्मावलंबी को हिंदू परिभाषित किया गया है। स्वामी प्रसाद ने हिन्दू को धोखा बताया। उनके बयान का निहितार्थ यह हुआ कि संविधान में धोखा का उल्लेख है। इसी प्रकार डॉ आंबेडकर ने हिन्दू कोड बिल पेश किया था। स्वामी प्रसाद के अनुसार तो इसे भी धोखा समझना होगा।
बसपा और भाजपा में मंत्री बन कर सत्ता सुख भोगने के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य अब सपा में हैं। जिस पार्टी में रहे उसको छोड़ कर शेष दो पार्टियों को नागनाथ सांपनाथ बताते रहे। अपने को नेवला बताने में उन्हें गर्व होता रहा। लेकिन इस राजनीतिक यात्रा में उन्होंने अपने को पूरी तरह अविश्वसनीय बना लिया है। इसीलिए उनके बयान भी उन्हीं की तरह अविश्वसनीय हैं। उनके राजनीतिक जीवन का अधिकांश हिस्सा सपा पर हमला बोलते ही बीता है। सपा संस्थापक से लेकर आज का नेतृत्व तक उनके निशाने पर रहता था। करीब डेढ़ वर्ष पहले तक उनका यही अंदाज हुआ करता था। उन्होंने अखिलेश यादव को सर्वाधिक विफल मुख्यमंत्री बताया था। योगी सरकार में मंत्री रहते हुए स्वामी प्रसाद साँस्कृतिक राष्ट्रवाद के समर्थक थे। अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि पर मन्दिर निर्माण शिलान्यास के समय भी वह मंत्री थे। एक बार भी विचलित